( तर्ज - मुझे क्या काम दुनियासे ० )
पियाकों छोड़कर अपने ,
कहाँ बनमें ढँढोलूँगी ? ।
बडा बन मनके बाहर है ,
पता कैसे टटोलूँगी ? || टेक ||
पकड़कर जी से मैं उनको ,
विठालूँ दिलके अंदरमे ।
रहूँगी जागती हरदम ,
सोहँकी धुन लगालूँगी ॥१ ॥
चढूँगी द्वारपर दसवें ,
पियाकी सेज विछवाने ।
उजाला ज्योतियों काही ,
मैं प्रीतीसे जलालूँगी ॥ २ ॥
फँवारे धार संगमके ,
निकटही भ्रमरगुंफाके
चढाकर नैनको उलटे ,
झरा अमृत खुला लूँगी ॥३ ॥
कहे तुकड्या वह अब हमसे ,
लिजाओ भेद भेदीका ।
समा प्यारा है सबहीमे
यही सब दिन सुनाऊंगी || ४ ||
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा